संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग में 10 फरवरी 2017 को उच्च सदन राज्यसभा ने शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यकरण) बिल, 2016 पारित कर दिया. इस क़ानून के तहत शत्रु संपत्ति का हस्तांतरण नियंत्रित हो सकेगा. वहीं, ये क़ानून 1968 से पहले और बाद में किए गए संपत्ति हस्तांतरण पर भी रोक लगाता है. ये बिल सिविल अदालतों और दूसरी प्राधिकरणों को शत्रु संपत्ति के विवादों से भी दूर रखता है.
‘शत्रु संपत्ति’ ऐसी कोई भी संपत्ति है जो किसी शत्रु या शत्रु कंपनी की है या उसका प्रबंधन उसकी ओर से किया जा रहा है. भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति कानून को लागू किया गया जो इस तरह की संपत्तियों का विनियमन करता है और इसके हकदारों की शक्तियों को सूचीबद्ध करता है.
वहीं 1962 के चीन युद्द के बाद चीन को भी शत्रु देश की श्रेणी में डाला गया, बाद में शत्रु संपत्ति क़ानून 1968 के तहत सरकार को शत्रु संपत्तियों का संरक्षक बना दिया गया. इस वक्त लगभग साढ़े 9 हज़ार (9429) शत्रु संपत्ति देश में मौजूद हैं, जिसकी कीमत करीब 1 लाख करोड़ तक बताई जाती है.
शत्रु संपत्ति मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 2005 के आदेश के मद्देनजर यूपीए सरकार भी 2010 में एक अध्यादेश लाई थी. बाद में मोदी सरकार ने भी इस बारे में एक बिल लोक सभा में पेश किया जिसे 9 मार्च 2016 को पारित किया गया. लेकिन राज्य सभा में इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग हुई. अंततः अब संसद से यह बिल पारित हो गया है. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद या कानून बन जायेगा.
स्रोत – प्रसार भारती