बिहार के प्रसिद्ध मर्चा चावल (काली मिर्च की तरह दिखने वाले) को सरकार ने जीआई टैग दिया है। यह चावल अपने सुगन्धित स्वाद और सुगन्धित चूड़ा बनाने के लिए प्रसिद्ध है। जीआई रजिस्ट्री चेन्नई की जीआई टैग पत्रिका के अनुसार मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समुहाट गांव, सिंगासनी, जिला- पश्चिम चंपारण (बिहार) द्वारा जीआई टैग के लिए आवेदन दिया गया था, जिसे मंजूरी दे दी गई है।
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मर्चा बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थानीय रूप से पाए जाने वाले चावल की एक किस्म है। यह काली मिर्च की तरह दिखाई देता है, इसलिए इसे मिर्चा या मर्चा राइस के नाम से जाना जाता है। इसे स्थानीय स्तर पर मिर्चा, मर्चैया, मारीचै आदि नामों से भी जाना जाता है। मर्चा धान के पौधे, अनाज और गुच्छे में एक अनूठी सुगंध होती है, जो इसे अलग बनाती है। मर्चा चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड के कुछ गांव – मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर हैं। मर्चा धान का पौधा लंबा होता है। ये किस्म बुवाई के 145 से 150 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है और 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।
किसी भी उत्पादन को भौगोलिक सांकेतिक यानी जीआई टैग मिलने से विश्वव्यापी पहचान मिल जाती है। लोग जीआई टैग उत्पादों को क्वालिटी में बेस्ट मानते हैं, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी मार्केटिंग का ज्यादा आसार होते हैं। एक तरीके से देखा जाए तो स्थान विशेष से ताल्लुक रखने वाले उत्पादों को जीआई टैग मिलने से ना सिर्फ उत्पाद का निर्यात बढ़ जाता है, बल्कि इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आता है। विशेष उत्पादन को जीआई टैग मिलने से उनकी सुरक्षा और संरक्षण भी आसान हो जाता है।
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