भूपेंद्र यादव, माननीय केंद्रीय मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, भारत सरकार ने 20 मई 2023 को भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (भा.वा.अ.शि.प.), देहरादून में सतत भूमि प्रबंधन पर उत्कृष्टता केंद्र का उद्घाटन किया। इस केंद्र की स्थापना की घोषणा भारत के माननीय प्रधान मंत्री द्वारा मृदा निम्नीकरण प्रतिरोध करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के कॉप-14 सम्मेलन (COP 14) के उच्च-स्तरीय खंड को संबोधित करते हुए की गई थी। इस केंद्र की मुख्य भूमिका मृदा निम्नीकरण प्रतिरोध हेतु संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अंतर्गत विकासशील देशों के बीच ज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा करना है।
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भारत के प्रधानमंत्री ने 9 सितंबर 2019 को भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद में 14वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी-14) के दौरान यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के सस्टेनेबल लैंड मैनेजमेंट पर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओईएसएलएम) के स्थापना की घोषणा की थी। सीओई-एसएलएम का उद्देश्य दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देकर सतत भू-प्रबंधन के तरीकों से भू-क्षरण की समस्या को दूर करना है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव ने सीओई-एसएलएम का औपचारिक उद्घाटन 20 मई 2019 को आईसीएफआरई देहरादून में किया था।
सीओई-एसएलएम ने आईसीएफआरआई की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी सहयोग, दक्षता उन्नयन तथा ज्ञान के अदान-प्रदान के माध्यम से बंजर भूमि को उपजाऊ बनाना, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन यूएनसीसीडी के सहयोगी देशों के साथ मिलकर सीओई-एसएलएम और एलडीएन लक्ष्य को प्राप्त करना, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ाना तथा संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) एवं जैव विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी) और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के प्रारूप के अनुसार सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) में अपना सहयोग देना है।
सीओई-एसएलएम ने अपने कार्यों के मार्गदर्शन के लिए कुछ विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इनमें भूमि क्षरण के आंकलन, स्थायी भूमि प्रबंधन पर दक्षता उन्नयन के साथ सतत विकास के लक्ष्य एसडीजी, यूएनसीसीडी द्वारा निर्धारित भूमि आधारित संकेतकों के मूल्यांकन, निगरानी और रिपोर्टिंग को मजबूत करना है। केंद्र के अन्य उद्देश्यों में एलडीएन लक्ष्य निर्धारित करना, सूखा जोखिम और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना, मुख्य धारा के लैंगिक अनुपातों पर विचार, भूमि अधिकारों के सुशासन को बढ़ावा देना और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन तथा जैव विविधता की हानि पर भूमि क्षरण के प्रभावों का आकलन करना है।
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