भारत के वन्यजीव प्रेमियों, वन अधिकारियों और आम नागरिकों के लिए एक भावुक क्षण में, एशिया की सबसे उम्रदराज जीवित हथिनी वत्सला ने मंगलवार, 8 जुलाई 2025 को मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में अंतिम सांस ली। माना जाता है कि उसकी उम्र 100 वर्ष से अधिक थी, जो एशियाई हाथियों के लिए एक अत्यंत दुर्लभ और असाधारण आयु है।
उसका निधन एक युग के अंत को चिह्नित करता है—एक ऐसा जीवन जो पीढ़ियों तक फैला रहा और जिसने इंसानों और वन्यजीवों के बीच संवेदनशील सामंजस्य का प्रतीक बनकर सभी के हृदयों में विशेष स्थान बना लिया।
वत्सला का जन्म केरल के नीलांबुर जंगल में हुआ था और उन्होंने अपना शुरुआती जीवन वनोपज के परिवहन में बिताया था। 1971 में करीब 50 साल की उम्र में उन्हें होशंगाबाद के बोरी अभयारण्य लाया गया, और फिर 1993 में वत्सला को पन्ना टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित कर दिया गया। पन्ना आकर वत्सला ने सिर्फ हाथियों के झुंड का नेतृत्व ही नहीं किया, बल्कि वे बाघों की ट्रैकिंग में भी 10 सालों तक मदद करती रहीं।
2003 में उन्हें सेवानिवृत्त कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद भी वे हिनौता कैंप में रहकर छोटे हाथी के बच्चों की देखभाल करती थीं और उन्हें गुर सिखाती थीं। इसी मातृ प्रवृत्ति और स्नेह भरे स्वभाव के कारण उन्हें ‘दादी’ के नाम से भी पुकारा जाता था।
ऊँचाई: समुद्र तल से 211 मीटर से 540 मीटर तक
तापमान सीमा: 15°C से 40°C तक
कोर क्षेत्र: 576 वर्ग किलोमीटर
बफर क्षेत्र: 1,022 वर्ग किलोमीटर
मुख्य नदियाँ: केन और बेतवा
वन प्रकार: उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय शुष्क चौड़ी पत्ती वाले वन
यह उद्यान मध्य भारत के प्रमुख टाइगर रिज़र्व में से एक है और जैव विविधता के संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है।
मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिलों में स्थित, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान भारत के सबसे प्रतिष्ठित टाइगर रिज़र्व और जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक है। यह भारत का 22वाँ और मध्य प्रदेश का छठा टाइगर रिज़र्व है, जिसे केन नदी घाटी में फैले हुए क्षेत्र में घोषित किया गया है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक विरासत और समृद्ध वन्यजीव विविधता इसे विशेष बनाते हैं।
यह उद्यान खजुराहो (यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल) से केवल 57 किलोमीटर की दूरी पर है, जिससे पन्ना न केवल वन्यजीव प्रेमियों बल्कि सांस्कृतिक और पुरातात्विक रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र बनता है।
पन्ना टाइगर रिज़र्व ने विश्वभर में सुर्खियाँ बटोरीं जब वर्ष 2006 से 2008 के बीच शिकार की घटनाओं के कारण यहाँ बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। यह भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास का एक संकटपूर्ण अध्याय था। लेकिन 2009 में तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर. श्रीनिवास मूर्ति के नेतृत्व में बाघ पुनर्वास कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जो देश में बाघों के संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।
निकटवर्ती अभयारण्यों से तीन बाघों को स्थानांतरित करके बाघों की पुनर्स्थापना की गई और धीरे-धीरे इनकी आबादी फिर से बढ़ने लगी। हालिया अनुमान के अनुसार:
बाघों की संख्या: 55 से अधिक (शावकों सहित)
भारत की सबसे सफल टाइगर रिकवरी कहानियों में से एक
इस उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए पन्ना टाइगर रिज़र्व को भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा “अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस 2007” से सम्मानित किया गया था। यह सफलता न केवल संरक्षण नीति की जीत थी, बल्कि यह भी दर्शाती है कि यदि समय रहते प्रयास किए जाएँ, तो प्रकृति पुनर्जीवित हो सकती है।
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान की वनस्पति मुख्यतः शुष्क पर्णपाती (ड्राय डीसिडुअस) वनों से बनी है, जो विंध्याचल की पठारी भूमि और शुष्क जलवायु के कारण वन्यजीवों के लिए एक आदर्श आवास प्रदान करती है। यहाँ की विविध पारिस्थितिक संरचनाएँ अनेक वन्य जीवों और पक्षियों को आश्रय देती हैं। प्रमुख वनस्पति प्रकार निम्नलिखित हैं:
शुष्क सागौन वन (Dry Teak Forests) – पन्ना के कई क्षेत्रों में सागौन के घने वन मिलते हैं जो वनों की प्रमुख पहचान हैं।
मिश्रित वनों का क्षेत्र (Mixed Woodlands) – इनमें तेंदू, पलाश, अंजन, अचर, साजा, अर्जुन, बेल, महुआ जैसी देशी प्रजातियाँ शामिल हैं।
घास के मैदान और नदी किनारे के पारिस्थितिक तंत्र (Grasslands and Riverine Habitats) – केन और बेटवा नदियों के आसपास हरे-भरे घास के मैदान पाए जाते हैं जो शाकाहारी जीवों के लिए पोषण का स्रोत हैं।
काँटेदार वन और खुले जंगल (Thorny Forests and Open Woodlands) – सूखे क्षेत्रों में बबूल और अन्य काँटेदार झाड़ियाँ पाई जाती हैं जो शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल हैं।
यह विविध और समृद्ध वनस्पति पन्ना को जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
सामान्य वृक्ष प्रजातियाँ:
टेक्टोना ग्रैंडिस (सागौन)
डायोस्पायरोस मेलेनोक्सिलोन (तेंदू)
मधुका इंडिका (महुआ)
एनोजीसस लैटिफोलिया
बोसवेलिया सेराटा (सलाई)
बुकाननिया लानज़ान (चिरौंजी)
समृद्ध वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान अपनी समृद्ध और विविध जीव-जंतु संपदा के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे मध्य भारत के प्रमुख अभयारण्यों में से एक बनाती है।
बड़े स्तनधारी
रॉयल बंगाल टाइगर (Panthera tigris)
तेंदुआ (Panthera pardus)
भालू (स्लॉथ बेयर)
भेड़िया (वुल्फ)
जंगली कुत्ता (ढोल)
कैराकल (Caracal)
लकड़बग्घा (Hyena)
शाकाहारी प्रजातियाँ
चीतल (धब्बेदार हिरण)
सांभर
चिंकारा (भारतीय गज़ेल)
नीलगाय
चौसिंगा (चार सींगों वाला मृग)
पक्षी और सरीसृप
300 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, जिनमें गिद्ध और जल पक्षी प्रमुख हैं
घड़ियाल और मगरमच्छ – विशेष रूप से केन नदी में पाए जाते हैं
संरक्षण और मान्यता
1994 में प्रोजेक्ट टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया
सामुदायिक-आधारित इको-टूरिज्म और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन के लिए सराहा गया
यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क के लिए नामांकन प्रक्रिया जारी, अद्भुत भूगर्भीय विशेषताओं के कारण
स्थान और पहुँच
निकटतम हवाई अड्डा: खजुराहो (लगभग 40 किमी)
निकटतम रेलवे स्टेशन: सतना या झाँसी
सड़क मार्ग से: भोपाल, जबलपुर और झाँसी से अच्छी कनेक्टिविटी
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान जैव विविधता, संरक्षण प्रयासों और सतत पर्यटन का आदर्श उदाहरण है।
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