भारत की बख्तरबंद कोर (Armoured Corps) उसकी स्थलीय युद्ध रणनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इस सामर्थ्य के अग्रिम मोर्चे पर दो प्रमुख मुख्य युद्धक टैंक (Main Battle Tanks – MBTs) तैनात हैं:
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अर्जुन Mk1A – एक स्वदेशी डिज़ाइन, जिसे भारत में ही विकसित किया गया है
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टी-90 भीष्म – रूस के T-90S टैंक का एक अनुकूलित (customized) भारतीय संस्करण
दोनों टैंक भारतीय सेना में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन ये विभिन्न डिज़ाइन दर्शन और युद्धभूमि पर अलग-अलग कार्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
1. डिज़ाइन की उत्पत्ति और दार्शनिक दृष्टिकोण
अर्जुन Mk1A भारत में स्वदेशी रूप से विकसित टैंक है, जिसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा डिज़ाइन किया गया है। यह अर्जुन Mk1 का उन्नत संस्करण है और इसमें वर्षों के डिजाइन अनुभव, विकास और उपयोगकर्ता प्रतिक्रिया को सम्मिलित किया गया है। इसका डिज़ाइन क्रू की सुरक्षा, भारी कवच और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स पर केंद्रित है।
वहीं दूसरी ओर, टी-90 भीष्म रूस के प्रसिद्ध T-90S प्लेटफ़ॉर्म पर आधारित है। इसे भारत ने प्रत्यक्ष आयात और लाइसेंस प्राप्त निर्माण (HVF, अवडी) के माध्यम से प्राप्त किया है। यह टैंक तुलनात्मक रूप से हल्का, अधिक गतिशील और त्वरित तैनाती के लिए अनुकूलित है। इसकी डिज़ाइन रणनीति द्रुत युद्धाभ्यास और बड़े पैमाने पर तैनाती पर केंद्रित है।
2. मारक क्षमता और आयुध
अर्जुन Mk1A:
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सुसज्जित है 120 मिमी राइफल्ड गन से
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यह फायर कर सकता है:
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FSAPDS (Fin-Stabilized Armour-Piercing Discarding Sabot)
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HESH (High-Explosive Squash Head)
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एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM)
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इसमें रिमोट कंट्रोल्ड वेपन स्टेशन (RCWS) भी है, जो निकट दूरी व वायु रक्षा के लिए उपयोगी है।
टी-90 भीष्म:
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सुसज्जित है 125 मिमी स्मूथबोर गन से
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इसमें ऑटो-लोडर प्रणाली है, जिससे लोडिंग स्वचालित होती है और क्रू की संख्या कम होती है
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यह फायर कर सकता है:
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APFSDS (Armour-Piercing Fin-Stabilized Discarding Sabot)
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HEAT (High-Explosive Anti-Tank)
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इनवार (Invar) जैसी ATGM मिसाइलें
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विशेष तुलना:
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टी-90 में ऑटो-लोडर होने से फायरिंग गति थोड़ी अधिक है
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जबकि अर्जुन की राइफल्ड बैरल तकनीक लॉन्ग रेंज सटीकता (accuracy) में श्रेष्ठ मानी जाती है
3. सुरक्षा और जीवित रहने की क्षमता
अर्जुन Mk1A में अत्याधुनिक कंपोज़िट कवच (Composite Armor) के साथ-साथ एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर (ERA) पैनल लगे हैं। यह टैंक एडवांस्ड लेज़र वॉर्निंग एंड काउंटरमेज़र सिस्टम (ALWCS), माइन प्लो, और न्यूक्लियर-बायोलॉजिकल-केमिकल (NBC) सुरक्षा से भी लैस है, जिससे यह क्षेत्र के सबसे सुरक्षित युद्धक टैंकों में से एक बनता है।
वहीं, टी-90 भीष्म में कॉन्टाक्ट-5 ERA और कंपोज़िट कवच का मिश्रण उपयोग किया गया है, जो मजबूत सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन हल्के और कॉम्पैक्ट डिज़ाइन में। यह Shtora-1 पैसिव इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल काउंटरमेज़र सिस्टम से भी सुसज्जित है, जो दुश्मन की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) और लेज़र-निर्देशित हथियारों की प्रभावशीलता को कम करता है।
4. गतिशीलता और वज़न
अर्जुन Mk1A का वज़न लगभग 68.5 टन है, जिससे यह दुनिया के सबसे भारी MBT टैंकों में गिना जाता है। इसके पास 1,500 हॉर्सपावर (hp) का शक्तिशाली इंजन है, लेकिन भारीपन के कारण यह कुछ इलाकों—जैसे नदी क्षेत्र या रेगिस्तानी इलाकों—में संचालन में सीमित हो सकता है।
इसके विपरीत, टी-90 भीष्म का वजन लगभग 46.5 टन है, जो इसे अधिक फुर्तीला और गतिशील बनाता है। यह विशेष रूप से थार रेगिस्तान जैसे विविध भौगोलिक क्षेत्रों में उपयुक्त है। इसका 1,000 hp इंजन भले ही कम ताकतवर हो, लेकिन हल्के वजन के कारण इसकी रफ़्तार और रणनीतिक गतिशीलता बेहतर रहती है।
5. तकनीक और चालक दल की सुविधा
अर्जुन Mk1A में उन्नत फायर कंट्रोल सिस्टम, थर्मल इमेजिंग साइट्स, हंटर-किलर क्षमता, और स्वचालित लक्ष्य ट्रैकिंग जैसी आधुनिक सुविधाएँ हैं। इसमें डिजिटल कम्युनिकेशन सिस्टम और बेहतर क्रू एर्गोनॉमिक्स भी हैं, जिससे चालक दल को बेहतर सिचुएशनल अवेयरनेस और युद्ध प्रबंधन क्षमता मिलती है।
टी-90 भीष्म में भी आधुनिक ऑप्टिक्स और फायर कंट्रोल सिस्टम मौजूद हैं, लेकिन इसके रूसी मूल प्रणाली को आज के मानकों के अनुसार थोड़ा पुराना माना जाता है। इसका इंटीरियर तंग होता है, जिससे लंबी तैनाती के दौरान चालक दल को असुविधा हो सकती है।
6. संचालन भूमिका और रणनीतिक महत्व
टी-90 भीष्म भारतीय बख्तरबंद बलों की रीढ़ की हड्डी है, जिसके 1,100 से अधिक यूनिट्स सक्रिय सेवा में हैं। इसे भारत की पश्चिमी सीमाओं पर बड़े पैमाने पर तैनात किया गया है और यह भारत के वर्तमान आर्मर्ड डॉक्ट्रिन्स में पूरी तरह से एकीकृत है।
अर्जुन Mk1A, संख्या में कम होते हुए भी, एक उन्नत प्रौद्योगिकी प्रदर्शनकर्ता (technological demonstrator) और दीर्घकालिक अभियानों के लिए उपयुक्त प्लेटफ़ॉर्म माना जाता है। इसकी तैनाती मुख्यतः दक्षिणी क्षेत्रों में की गई है, जहाँ इसका वज़न और आकार लॉजिस्टिक रूप से कम चुनौतीपूर्ण होते हैं।