केरल में एम्ब्रोसिया बीटल से रबर बागानों को खतरा

केरल के रबर बागानों को एक आक्रामक कीट, एम्ब्रोसिया बीटल (Euplatypus parallelus) से गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है, जो हानिकारक फफूंदों को साथ लाकर पेड़ों को व्यापक रूप से नुकसान पहुंचा रहा है। इस संक्रमण से लेटेक्स उत्पादन प्रभावित हो रहा है और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है, जिससे वैज्ञानिकों और किसानों के बीच चिंता बढ़ गई है।

पृष्ठभूमि

एम्ब्रोसिया बीटल, जो मूल रूप से मध्य और दक्षिण अमेरिका का निवासी है, भारत में पहली बार 2012 में गोवा के काजू पेड़ों पर देखा गया था। यह कीट आमतौर पर तनावग्रस्त या मरे हुए पेड़ों को निशाना बनाता है, जिनमें सुरंगें बनाकर वह फफूंद के बीजाणु छोड़ता है। यह बीटल Fusarium ambrosia और हाल ही में पहचाना गया Fusarium solani फफूंद अपने साथ लाता है, जो पेड़ों के लिए अत्यधिक विनाशकारी साबित हो रहे हैं।

संक्रमण का तरीका

यह बीटल पेड़ के तनों में सुरंगें (गैलेरी) बनाता है, जहां ये फफूंद विकसित होती हैं। परस्पर लाभकारी संबंध में, ये फफूंद बीटल और उसके लार्वा के लिए भोजन का काम करती हैं, जबकि बीटल इन फफूंदों के प्रसार में मदद करते हैं। अधिकांश ऐम्ब्रोसिया बीटल्स के विपरीत, इस प्रजाति में मायकैन्जिया (फफूंद ले जाने वाले अंग) नहीं होते, जिससे इसकी फफूंद ले जाने की क्षमता असामान्य और चिंताजनक बन जाती है।

रबर बागानों पर प्रभाव

संक्रमित पेड़ों से लेटेक्स रिसने लगता है, पत्ते झड़ने लगते हैं और तना सूखने लगता है। फफूंद जाइलम वाहिकाओं को अवरुद्ध कर देती है, जिससे जल प्रवाह बाधित होता है और लकड़ी की गुणवत्ता गिरती है। परिणामस्वरूप, लेटेक्स उत्पादन घटता है और पेड़ की रिकवरी धीमी या असंभव हो जाती है। यह स्थिति केरल के रबर किसानों के लिए गंभीर आर्थिक संकट पैदा कर सकती है।

नियंत्रण उपाय और चुनौतियाँ

वर्तमान उपायों में संक्रमित पेड़ों को हटाना, बीटल पकड़ने के लिए ट्रैप्स लगाना और ऐंटी-फंगल उपचार शामिल हैं। हालांकि, फफूंद का आंतरिक संक्रमण होने के कारण ये उपाय सीमित रूप से ही प्रभावी हैं। प्रारंभिक पहचान और निगरानी अत्यंत आवश्यक है, लेकिन बड़े पैमाने पर बागानों में इसे लागू करना कठिन है।

व्यापक जोखिम

यह ऐम्ब्रोसिया बीटल 80 से अधिक चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों पर आक्रमण कर सकता है, जिनमें सागौन, कॉफी, काजू और नारियल शामिल हैं। यदि यह अन्य रोगजनक फफूंदों से नए संबंध बना लेता है, तो पारिस्थितिक और आर्थिक जोखिम कई गुना बढ़ सकते हैं। इसके अतिरिक्त, Fusarium प्रजातियां मानव स्वास्थ्य, विशेष रूप से कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को भी प्रभावित कर सकती हैं।

सिफारिशें

विशेषज्ञ केरल के लिए क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियों की सिफारिश करते हैं, क्योंकि सार्वभौमिक उपाय प्रभावी नहीं हो सकते। आशाजनक समाधानों में विरोधी फफूंदों (antagonistic fungi) और लाभकारी सूक्ष्मजीवों को पेड़ों के भीतर स्थापित करना शामिल है। दीर्घकालिक प्रबंधन के लिए वैज्ञानिकों, सरकारी एजेंसियों और किसानों के बीच सहयोग आवश्यक है।

[wp-faq-schema title="FAQs" accordion=1]
vikash

Recent Posts

जम्मू-कश्मीर को अपना पहला Gen Z पोस्ट ऑफिस मिला

जम्मू-कश्मीर ने सार्वजनिक सेवाओं के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।…

60 mins ago

मिची बेंटहॉस अंतरिक्ष में जाने वाली पहली व्हीलचेयर यूज़र बनकर इतिहास रचेंगी

जर्मन एयरोस्पेस इंजीनियर मिची बेंटहॉस अंतरिक्ष यात्रा करने वाली पहली व्हीलचेयर उपयोगकर्ता व्यक्ति बनने जा…

4 hours ago

अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस 2025: इतिहास और महत्व

अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस 2025 हर वर्ष 20 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिवस…

7 hours ago

भारतीय टीम ने नासा स्पेस ऐप्स चैलेंज में ग्लोबल टॉप सम्मान हासिल किया

भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक स्तर पर बड़ी पहचान मिली है। NASA इंटरनेशनल…

7 hours ago

Hurun India 2025: सेल्फ-मेड अरबपतियों में दीपिंदर गोयल नंबर वन

हुरुन रिच लिस्ट 2025 ने एक बार फिर भारत के तेज़ी से बदलते स्टार्टअप और…

8 hours ago

SEBI ने छोटे मूल्य में जीरो-कूपन बॉन्ड जारी करने की दी अनुमति

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने शून्य-कूपन बॉन्ड (Zero-Coupon Bonds) को अब ₹10,000 के…

22 hours ago