अमेज़न वर्षावन के गहरे हिस्से में वैज्ञानिकों की एक टीम एक अनोखा प्रयोग कर रही है, जिसका उद्देश्य यह समझना है कि बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) स्तर दुनिया के सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय जंगल को किस प्रकार प्रभावित करेंगे। इस परियोजना का नाम ‘अमेज़नफेस (AmazonFACE)’ है, और इसका मकसद भविष्य की जलवायु स्थितियों का अनुकरण (simulate) कर यह देखना है कि वन किस तरह अनुकूलन करता है। इस अध्ययन के निष्कर्ष जल्द ही जलवायु सम्मेलन COP30 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे, जिसकी मेज़बानी ब्राज़ील करने जा रहा है।
अमेज़नफेस अनुसंधान केंद्र अमेज़न क्षेत्र के सबसे बड़े शहर मनाउस (Manaus) के पास स्थित है। यहाँ जंगल की छत्रछाया (canopy) के ऊपर छह विशाल स्टील के वलय (rings) बनाए गए हैं, जिनमें प्रत्येक में 50 से 70 परिपक्व वृक्ष शामिल हैं।
इनमें से तीन वलयों में वैज्ञानिक भविष्य के अनुमानित CO₂ स्तर (2050–2060) के अनुरूप कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ेंगे, जबकि बाकी तीन वलय नियंत्रण समूह (control groups) के रूप में बिना परिवर्तन रखे जाएँगे।
परियोजना के समन्वयक कार्लोस केसादा (Carlos Quesada), जो नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर अमेज़न रिसर्च (INPA) से जुड़े हैं, ने कहा —
“हम भविष्य का वातावरण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।”
यह परियोजना यूनिवर्सिदादे एस्टादुअल दे कैंपिनास (Universidade Estadual de Campinas) के सहयोग से चलाई जा रही है।
अमेज़न जैसे उष्णकटिबंधीय वर्षावन वैश्विक तापन (global warming) को धीमा करने में अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये बड़ी मात्रा में CO₂ अवशोषित (absorb) करते हैं।
फिर भी वैज्ञानिक यह पूरी तरह नहीं जानते कि भविष्य में यदि वातावरण में CO₂ की मात्रा बढ़ती रही तो ये जंगल किस प्रकार प्रतिक्रिया देंगे।
यह प्रयोग यह समझने में मदद करेगा कि क्या अमेज़न भविष्य में भी कार्बन सिंक (carbon sink) के रूप में कार्य करता रहेगा — यानी जितना उत्सर्जन होता है उससे अधिक कार्बन सोखता रहेगा — या फिर इसकी यह क्षमता घट सकती है।
FACE का पूरा नाम है — Free-Air CO₂ Enrichment।
यह तकनीक वैज्ञानिकों को खुले वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता (concentration) बढ़ाने की अनुमति देती है, बिना किसी ग्रीनहाउस का उपयोग किए।
स्थल पर लगाए गए सैकड़ों सेंसर हर 10 मिनट में डेटा रिकॉर्ड करते हैं —
पेड़ कितनी मात्रा में CO₂ अवशोषित करते हैं,
वे कितना ऑक्सीजन और जलवाष्प (water vapor) छोड़ते हैं,
तथा सूर्यप्रकाश, वर्षा और तूफ़ानों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं।
समय के साथ वैज्ञानिक कृत्रिम सूक्ष्म-जलवायु (microclimate) भी बनाएँगे, जिनमें CO₂ का स्तर और अधिक होगा, ताकि अलग-अलग परिस्थितियों में वन की प्रतिक्रिया को समझा जा सके।
यह परियोजना ब्राज़ील की संघीय सरकार और यूनाइटेड किंगडम (UK) के सहयोग से संचालित हो रही है।
हालाँकि इसी तरह के FACE प्रयोग पहले संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में समशीतोष्ण (temperate) वनों पर किए जा चुके हैं, लेकिन उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में यह पहला प्रयोग है।
वन अभियंता गुस्तावो कार्वाल्हो (Gustavo Carvalho) ने इसे
“पर्यावरण विज्ञान की नई सीमारेखा (new frontier in environmental science)”
बताया और कहा कि यह अध्ययन बताएगा कि आने वाले दशकों में उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र (ecosystems) कैसे बदल सकते हैं।
अमेज़नफेस परियोजना के निष्कर्ष नवंबर 10–21, 2025 के बीच ब्राज़ील के बेलेम (Belem) शहर में आयोजित होने वाले COP30 जलवायु सम्मेलन में प्रस्तुत किए जाएँगे, जहाँ अमेज़न नदी अटलांटिक महासागर से मिलती है।
इन निष्कर्षों से वैज्ञानिक आधार पर जलवायु नीतियाँ बनाने में मदद मिलेगी, जिससे
वर्षावनों की रक्षा,
वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रभावों को कम करने, और
सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) को आगे बढ़ाने
में योगदान मिलेगा।
संक्षेप में:
‘अमेज़नफेस’ केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि यह पृथ्वी के भविष्य का पूर्वावलोकन है — यह समझने का प्रयास कि जब वातावरण में कार्बन की मात्रा और बढ़ेगी, तो प्रकृति कैसे साँस लेगी।
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