अफगानिस्तान ने हाल ही में अपने दिल्ली स्थित दूतावास को स्थायी रूप से बंद करने की घोषणा की है। वहीं, उसके मुंबई और हैदराबाद मिशनों ने के प्रमुखों ने दूतावास का नेतृत्व संभालने का दावा किया है। दूतावास ने 30 सितंबर को घोषणा की थी कि वह एक अक्टूबर से अपना परिचालन बंद कर रहा है। मिशन ने तब भारत सरकार से समर्थन की कमी, अफगानिस्तान के हितों की सेवा व अपेक्षाओं को पूरा करने में विफलता और कर्मियों व संसाधनों में कमी का हवाला दिया था।
एक बयान जारी कर दूतावास ने कहा कि उसे भारत सरकार की ओर से लगातार मिल रही चुनौतियों के कारण नई दिल्ली में अपने राजनयिक मिशन को 23 नवंबर से स्थायी रूप से बंद करने की घोषणा करते हुए खेद है। बयान में आगे कहा गया, यह फैसला दूतावास द्वारा तीस सितंबर को संचालन बंद करने के निर्णय का अनुपालन करता है। यह कदम इस उम्मीद में उठाया गया था कि मिशन को सामान्य रूप से संचालित करने के लिए भारत सरकार का रुख अनुकूल रूप से बदल जाएगा।
अफगान दूतावास ने क्या कहा?
अफगान दूतावास ने कहा, दुर्भाग्य से आठ हफ्तों के इंताजार के बावजूद राजनयिकों के लिए वीजा विस्तार और भारत सरकार के आचरण में बदलाव के उद्देश्यों को पूरा नहीं किया जा सका। तालिबान और भारत सरकार दोनों के नियंत्रण छोड़ने के लगातार दबाव को देखते हुए दूतावास को एक कठिन विकल्प को चुनना पड़ा।
हालांकि, मुंबई में अफगानिस्तान की महावाणिज्य दूत जाकिया वरदाक और हैदराबाद में कार्यवाहक महावाणिज्य दूत सैयद मोहम्मद इब्राहिमखिल ने एक बयान में घोषणा की कि भारत और अफगानिस्तान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के मद्देनजर वे फिर से इस बात को दोहराते हैं कि उन्होंने नई दिल्ली में दूतावास के निरंतर कामकाज को सुनिश्चित करने का फैसला किया है। दोनों राजनयिकों ने कहा कि उन्होंने नई दिल्ली में अफगानिस्तान दूतावास का नेतृत्व संभाल लिया है।
भारत सरकार को राजनयिक सौंपना और भविष्य पर विचार
वरदाक और इब्राहिमखिल ने सभी से अनुरोध किया कि वे पूर्व अफगान राजनयिकों द्वारा जारी किए गए गैर-पेशेवर और गैर-जिम्मेदाराना संचार को अनदेखा करें और उनकी उपेक्षा करें, उन्हें नई दिल्ली में अफगान दूतावास के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।