अडानी समूह ने इजरायल के हाइफा बंदरगाह ( Hafia Port) का 1.2 अरब डॉलर में अधिग्रहण कर लिया है। यह रणनीतिक तौर पर भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। इस सौदे के तहत अडानी समूह तेल अवीव में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब स्थापित करेगा।
आपको बता दें कि अडानी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मौजूदगी में हाइफा बंदरगाह के अधिग्रहण का समझौता किया। इसी दौरान निवेश अवसरों के बारे में भी बात की गई। आपको बता दें कि अमेरिकी निवेश शोध फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद अडानी समूह के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। वहीं दूसरी तरफ नेतन्याहू ने हाइफा बंदरगाह के अधिग्रहण को ‘मील का पत्थर’ बताते हुए कहा कि इससे भारत और इजरायल के बीच कई माध्यमों से संपर्क और बढ़ेगा।
अडानी ने कहा कि भारत-इस्राइल की दोस्ती 23 सितंबर, 1918 से है, जब भारतीय शहरों मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर के सैनिकों ने हाइफा की आजादी के लिए यहां लड़ाई लड़ी थी।
अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) और इस्राइल के गैडोट ग्रुप के कंसोर्टियम ने पिछले साल जुलाई में 1.18 बिलियन अमेरीकी डालर के लिए हाइफा बंदरगाह के निजीकरण के लिए टेंडर जीता था। इसने इस साल 11 जनवरी को खरीद की प्रक्रिया पूरी की, जिसके बाद बंदरगाह पर प्रगति कार्य पूरे जोरों पर चल रहा है। कंसोर्टियम में भारतीय भागीदार की हिस्सेदारी 70 फीसदी है, जबकि उसके इस्राइली साझेदार गैडोट के पास 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
हाइफा बंदरगाह के अधिग्रहण के जरिए इस्राइल में अडानी समूह के सफल प्रवेश को ‘रणनीतिक खरीद’ के तौर पर देखा जा रहा है। यह संभवत: किसी भी क्षेत्र में इस देश में सबसे बड़ा विदेशी निवेश है। अडानी की कंपनी भारत में 13 समुद्री टर्मिनलों का संचालन करती है और भारत के समुद्री वाणिज्य के 24 फीसदी हिस्से को नियंत्रित करती है। पश्चिम में इसकी कोई होल्डिंग नहीं है, इसलिए इस्राइल में इसका प्रवेश एशिया और यूरोप के बीच समुद्री यातायात में बढ़ोतरी का एक संकेत है, और प्रमुख एशियाई खिलाड़ियों को भूमध्य सागर में एक केंद्र की आवश्यकता है।
हाइफा बंदरगाह मालवाहक जहाजों के संबंध में इजरायल में दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है, जबकि पर्यटक जहाजों के मामले में यह एकलौता सबसे बड़ा बंदरगाह है। इस अवसर पर इजरायल पीएम नेतन्याहू ने कहा कि मुझे लगता है कि यह मील का पत्थर है। लगभग 100 सालों से और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने हाइफा शहर को आजादी हासिल करने में मदद की थी। उसी भारत के निवेशक अब हाइफा बंदरगाह को आजाद करने में मदद कर रहे हैं
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