एम.के.रंजीतसिंह द्वारा लिखित पुस्तक “माउंटेन मैमल्स ऑफ द वर्ल्ड”

भारत के कुछ ही संरक्षणवादियों का प्रभाव इतना गहरा रहा है जितना एम. के. रणजीतसिंह का, जिनकी नई पुस्तक “Mountain Mammals of the World” (पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित) उनके जीवनभर के समर्पण का प्रमाण है। वांकानेर, गुजरात के शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले रणजीतसिंह ने भारत की वन्यजीव संरक्षण नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और यह पुस्तक उनके दशकों के शोध, अन्वेषण और प्राकृतिक दुनिया के प्रति अटूट जुनून का नतीजा है।

Mountain Mammals of the World सिर्फ एक किताब नहीं है—यह वन्यजीव प्रेमियों और विद्वानों के लिए एक आवश्यक संदर्भ है, जो दुनिया के सबसे दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले 62 प्रजातियों और 78 उप-प्रजातियों के बड़े स्तनधारियों की व्यापक जानकारी प्रदान करती है। इसमें वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि, शानदार फोटोग्राफी, और रणजीतसिंह के वर्षों के क्षेत्रीय अनुभवों से प्रेरित व्यक्तिगत किस्से शामिल हैं। इसे उनकी बेटी राधिका राणे गायकवाड़ समेत कई लोग उनकी सर्वोत्तम कृति के रूप में देखते हैं।

संरक्षण में एक जीवन की यात्रा

रणजीतसिंह की वन्यजीव संरक्षण में यात्रा समर्पण की एक अद्भुत कहानी है। एक युवा के रूप में, वे भारत के विशाल, अछूते परिदृश्य और प्राकृतिक दुनिया की सुंदरता से प्रभावित थे। अपने शुरुआती करियर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं, जो आने वाले वर्षों तक भारत के संरक्षण प्रयासों को आकार देने में सहायक रहीं। खासतौर पर, मध्य प्रदेश के मंडला जिले के जिला कलेक्टर के रूप में, उन्होंने मध्य भारतीय बारहसिंगा (दलदली हिरण) को विलुप्ति से बचाने के प्रयासों का नेतृत्व किया।

उनकी विरासत सबसे अधिक शायद प्रोजेक्ट टाइगर से जुड़ी है, जो भारत के संरक्षण इतिहास में एक महत्वपूर्ण पहल है। इस परियोजना के कार्यबल का हिस्सा रहते हुए, रणजीतसिंह ने भारत के बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना में योगदान दिया, जिससे उनकी लगभग विलुप्त होने की स्थिति से उबरने का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह परियोजना अब वैश्विक संरक्षण के लिए एक मॉडल मानी जाती है, जो रणजीतसिंह के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विलुप्त प्रजातियों को संरक्षित करने के प्रयासों को दर्शाती है।

“Mountain Mammals of the World” का महत्व

इस पुस्तक में रणजीतसिंह ने दुनिया के पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बड़े स्तनधारियों का दस्तावेजीकरण किया गया है। इसमें हिमालय के दुर्लभ हिम तेंदुए से लेकर साइबेरिया के दुर्लभ स्नो शीप तक की प्रजातियाँ शामिल हैं। यह पुस्तक इन प्रजातियों के व्यवहार, आवास और संरक्षण स्थिति के वैज्ञानिक ज्ञान में गहराई से प्रवेश कराती है।

पुस्तक में न केवल प्रजातियों के विस्तृत विवरण प्रस्तुत किए गए हैं, बल्कि उनके प्राकृतिक आवासों में इन प्राणियों की मनमोहक तस्वीरें भी शामिल हैं। ये फोटोग्राफ रणजीतसिंह के कई क्षेत्रीय अभियानों के दौरान खींची गईं हैं, जो दुनिया के पर्वतों की अद्भुत सुंदरता और वहां रहने वाले जीवों को बखूबी दर्शाती हैं। यह विज्ञान और दृश्य कथा का अद्वितीय संयोजन इसे पाठकों के लिए एक संपूर्ण अनुभव बनाता है।

व्यक्तिगत और दार्शनिक कार्य

इस पुस्तक के लॉन्च के मौके पर, जो WWF इंडिया के मुख्यालय में लोधी एस्टेट में आयोजित किया गया था, भारतीय राजनीति और संस्कृति के प्रमुख हस्ती डॉ. करण सिंह ने इसे वन्यजीव साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान बताया। रणजीतसिंह ने इस कार्यक्रम में अपने जीवन के तीन स्तंभों के बारे में चर्चा की: पहाड़, बौद्ध धर्म, और कश्मीर, जिन्होंने उनके जीवन और कार्य को गहराई से प्रभावित किया है। ये तत्व उनके संरक्षण और प्राकृतिक दुनिया के प्रति दृष्टिकोण को आकार देते हैं।

रणजीतसिंह के लिए, Mountain Mammals of the World केवल एक वैज्ञानिक पुस्तक नहीं है—यह उनके वन्यजीवों के प्रति जीवनभर के जुनून का व्यक्तिगत प्रतिबिंब है। उनकी बेटी राधिका राणे गायकवाड़ इसे अपने पिता की सर्वोत्तम कृति कहती हैं, इसे उनके अनुभवों और उन जानवरों के प्रति उनके गहरे प्रेम का समर्पण मानती हैं, जिन्हें वे जीवनभर बचाने के लिए समर्पित रहे। वह अपने पिता के साथ हिम तेंदुआ और स्नो शीप जैसी प्रजातियों को देखने के लिए अभियानों में शामिल होने की यादें साझा करती हैं, जो उनके कार्य की व्यावहारिक प्रकृति का प्रमाण है।

संरक्षण की तात्कालिकता

आज जब जैव विविधता पर बढ़ते खतरों का सामना है, Mountain Mammals of the World केवल इन अद्भुत प्रजातियों का उत्सव नहीं है, बल्कि संरक्षण के लिए एक आह्वान भी है। यह पुस्तक पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्रों की नाजुकता और आवासीय क्षति, जलवायु परिवर्तन, और शिकार के बढ़ते खतरों से उन्हें बचाने की आवश्यकता पर जोर देती है। रणजीतसिंह इस पुस्तक के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को संरक्षण की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं, ताकि दुनिया के वन्यजीव और उनके आवास भविष्य के लिए संरक्षित रहें।

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vikash

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