कोयला खनिक दिवस (Coal Miners’ Day) 4 मई को औद्योगिक क्रांति के कुछ महान अनसुने नायकों की कड़ी मेहनत की सराहना करने के लिए मनाया जाता है. कोयला खनिकों के लिए प्रशंसा दिखाने और उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए दिन मनाया जाता है. कोयला खनिक खदानों से कोयला खोदने, सुरंग बनाने और निकालने में अधिकांश दिन बिताते हैं. वे पृथ्वी पर गहरी खुदाई करते हैं ताकि हमारे जीवन को बनाए रखने में मदद करने वाले धन को बाहर लाया जा सके. कोयला खनन सबसे कठिन व्यवसायों में से एक है.
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दिन का इतिहास:
कोयला खनिक सदियों से काम कर रहे हैं, हालांकि, 1760 और 1840 के बीच औद्योगिक क्रांति के दौरान वे काफी महत्वपूर्ण हो गए, जब कोयले का ईंधन स्टेशनरी और लोकोमोटिव इंजन और ताप निर्माण में बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया. कोयला एक प्राकृतिक संसाधन है, जो आर्थिक और सामाजिक विकास दोनों को तेज करता है.
भारत में, कोयला खनन की शुरुआत 1774 में हुई, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के जॉन समर (John Summer) और सुएटोनियस ग्रांट हीटली (Suetonius Grant Heatly) ने दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे के साथ रानीगंज कोलफील्ड में वाणिज्यिक खोज शुरू की. 1853 में रेलवे द्वारा भाप लोकोमोटिव की शुरुआत के बाद कोयले की मांग बढ़ गई. हालाँकि, यह काम करने के लिए एक स्वस्थ जगह नहीं थी. लाभ के नाम पर कोयला खदानों में अत्यधिक शोषण और नरसंहार की कई घटनाएं हुईं.