भारत का राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” 7 नवम्बर 2025 को अपनी 150वीं वर्षगाँठ मना रहा है। “वंदे मातरम्” का अर्थ है — “माँ, मैं तुझे प्रणाम करता हूँ।” यह अमर गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित है, जिसने पीढ़ियों से भारतीयों में एकता, भक्ति और देशभक्ति की भावना जागृत की है।
यह गीत पहली बार 7 नवम्बर 1875 को बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, और बाद में “आनंदमठ” (1882) उपन्यास में सम्मिलित किया गया। इस पर संगीत रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दिया था। समय के साथ, वंदे मातरम् एक साहित्यिक रचना से आगे बढ़कर स्वाधीनता संग्राम का घोषवाक्य बन गया — भारत की सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीय आत्मा का प्रतीक।
“वंदे मातरम्” की यात्रा भारतीय राष्ट्रवाद के उदय की कहानी कहती है। शुरू में यह मातृभूमि के प्रति काव्यात्मक श्रद्धांजलि था, जो बाद में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध प्रतिकार का प्रतीक बन गया।
पहला प्रकाशन: बंगदर्शन, 7 नवम्बर 1875
साहित्य में समावेश: आनंदमठ (1882)
पहली सार्वजनिक प्रस्तुति: रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा, 1896 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में
पहला राजनीतिक उपयोग: 7 अगस्त 1905, बंगाल विभाजन-विरोधी आंदोलन के दौरान
श्री अरबिंदो ने 1907 में कहा था कि बंकिमचंद्र ने यह गीत 32 वर्ष पूर्व रचा था, जब बंगाल ने अपनी खोई हुई अस्मिता की खोज आरम्भ की थी।
बंकिमचंद्र के आनंदमठ ने मातृभूमि को देवी के रूप में चित्रित किया — भारत के आध्यात्मिक और राजनीतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बनाते हुए।
मठ के संन्यासी (संतान) अपनी “माँ” — अर्थात भारतमाता — की मुक्ति के लिए समर्पित रहते हैं। उनके मंदिर में माँ की तीन रूपों में पूजा होती है —
जो थी (The Mother That Was): गौरवशाली और भव्य
जो है (The Mother That Is): दासता में पीड़ित
जो होगी (The Mother That Will Be): स्वतंत्र और उज्ज्वल
श्री अरबिंदो के शब्दों में —
“उसकी दृष्टि की माता के सत्तर करोड़ हाथों में तलवार थी, भिक्षा का कटोरा नहीं।”
इस प्रकार, वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं रहा — बल्कि देशभक्ति का धर्म बन गया।
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय (1838–1894) आधुनिक बंगाली साहित्य के जनक माने जाते हैं।
मुख्य योगदान:
आधुनिक बंगाली गद्य के प्रवर्तक
प्रमुख उपन्यास: दुर्गेशनंदिनी (1865), कपालकुंडला (1866), आनंदमठ (1882), देवी चौधुरानी (1884)
वंदे मातरम् के माध्यम से भारत को “माँ” के रूप में मानवीकृत किया
युवाओं में मातृभूमि के प्रति भक्ति और राष्ट्रचेतना का संचार किया
20वीं सदी के आरम्भ तक, वंदे मातरम् राष्ट्रीय आंदोलन का नारा बन गया।
अक्टूबर 1905: बंदे मातरम् संप्रदाय की स्थापना, कलकत्ता
मई 1906: बारीसाल में 10,000 लोगों की “वंदे मातरम्” यात्रा
अगस्त 1906: बंदे मातरम् अंग्रेज़ी दैनिक का प्रकाशन, बिपिनचंद्र पाल व श्री अरबिंदो द्वारा
ब्रिटिश सरकार ने “वंदे मातरम्” के जनांदोलन से घबराकर इसके सार्वजनिक गायन पर प्रतिबंध लगा दिया।
बंगाल (रंगपुर, 1905) में छात्रों को दंडित किया गया
धुलिया (1906), बेलगाम (1908) आदि में प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी फिर भी, “वंदे मातरम्!” का उद्घोष पूरे भारत में एकता और साहस का प्रतीक बन गया।
यह गीत भारत के स्वाधीनता संघर्ष का समानार्थी बन गया —सभा, जुलूस और जेलों में “वंदे मातरम्” गूंजता रहा।
मुख्य क्षण:
1896: कांग्रेस अधिवेशन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा गायन
7 अगस्त 1905: स्वदेशी आंदोलन में नारा
1906–1908: बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब में विरोध प्रदर्शन
1914: लोकमान्य तिलक की रिहाई पर जनता का “वंदे मातरम्” से स्वागत
“वंदे मातरम्” की गूंज विदेशों तक पहुँची —
1907: स्टटगार्ट (जर्मनी) में मदाम भीकाजी कामा ने तिरंगा फहराया, जिस पर “वंदे मातरम्” अंकित था
1909: मदनलाल धींगरा के अंतिम शब्द — “बंदे मातरम्”
1909: जिनेवा से Bande Mataram पत्रिका का प्रकाशन
1912: दक्षिण अफ्रीका में गोपालकृष्ण गोखले का “वंदे मातरम्” से स्वागत
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की —
“वंदे मातरम्, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई, उसे जन गण मन के समान ही सम्मान प्राप्त होगा।”
इस प्रकार, वंदे मातरम् को भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया गया।
भारत सरकार इस ऐतिहासिक अवसर को वर्षभर मनाने जा रही है।
मुख्य आयोजन:
उद्घाटन समारोह: इंदिरा गांधी स्टेडियम, नई दिल्ली
राष्ट्रव्यापी जनभागीदारी (जिला और तहसील स्तर तक)
स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी
वंदे मातरम् पर प्रदर्शनी और लघु फिल्म
प्रसिद्ध गायकों द्वारा क्षेत्रीय संस्करणों की प्रस्तुति
वर्षभर की गतिविधियाँ:
आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विशेष कार्यक्रम
पीआईबी द्वारा चर्चा सत्र (टियर-2 व 3 शहरों में)
भारतीय मिशनों में वैश्विक सांस्कृतिक संध्या
“वंदे मातरम्: सलाम मदर अर्थ” वृक्षारोपण अभियान
देशभर में भित्तिचित्र, एलईडी प्रदर्शन और जनजागरूकता
बंकिमचंद्र और “वंदे मातरम्” पर 25 लघु फिल्में
यह अभियान “हर घर तिरंगा” आंदोलन के साथ जुड़ा रहेगा, जो एकता, गौरव और राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है।
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