जलियांवाला बाग हत्याकांड, जिसे अमृतसर नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है, 13 अप्रैल 1919 को हुआ था. इस साल आतंक की 102 वीं वर्षगांठ मनाई जा रही जिसने पूरे देश को एक ठहराव की ओर धकेल दिया था. जलियांवालाबाग उद्यान को एक स्मारक में बदल दिया गया है. और इस दिन हजारों लोग शहीद हुए पुरुषों, महिलाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने आते हैं, जो उस घातक दिन देश के लिए मारे गए थे.
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दिन का इतिहास:
कार्यवाहक ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड डायर (Reginald Dyer) ने ब्रिटिश भारतीय सेना की टुकड़ियों को पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीय नागरिकों की भीड़ पर अपनी राइफलें दागने का आदेश दिया था. ब्रिटिश भारत के सेना अधिकारी जनरल डायर ने महसूस किया कि किसी कारण से इस तरह लोगों को इकट्ठा करना देश विरोधी था. उन्होंने सिख, गोरखा, बलूची और राजपूत से मिलाकर अपने 50 सैनिकों को निहत्थे पुरुषों और महिलाओं पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था. परिणामी आंकड़े आपको स्तब्ध कर देंगे क्योंकि 379 पुरुषों और महिलाओं को किसी भी गलती के बिना मार दिया गया था और 1100 घायल हुए थे.
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